+ चोरी के त्याग का प्रकार -
असमर्था ये कर्त्तुं निपानतोयादिहरणविनिवृत्तिम् ।
तैरपि समस्तमपरं नित्यमदत्तं परित्याज्यम् ॥106॥
नित अन्य के कूपादि से, बिन दत्त नीरादि ग्रहण ।
यदि नहीं छोड़ सको तो छोड़ो, शेष सब बिन दे ग्रहण ॥१०६॥
अन्वयार्थ : [ये निपानतोयादिहरणविनिवृत्तम्] जो दूसरे के कुआँ, बावड़ी आदि जलाशयों का जल इत्यादि ग्रहण करने के त्याग [कर्त्तुम् असमर्था] करने में असमर्थ हैं [तै: अपि] उन्हें भी [अपरं समस्तं] अन्य सर्वं [अदत्तं नित्यम् परित्याज्यम्] बिना दी हुई वस्तुओं के ग्रहण को हमेशा त्यागें ।
Meaning : Those also who do not feel strong enough to refrain from taking well-water, etc., should totally abstain from taking anything else which is not given to them,

  टोडरमल