+ अनंगक्रीड़ा में हिंसा -
यदपि क्रियते किंचिन्मदनोद्रेकादनंगरमणादि ।
तत्रापि भवति हिंसा रागाद्युत्पत्तितन्त्रत्वात् ॥109॥
वर्तें अनंग क्रीड़ादि में, जो वासना आधिक्य से ।
होती सदा हिंसा वहाँ, रागादि की उत्पत्ति से ॥१०९॥
अन्वयार्थ : [अपि मदनोद्रेकात्] तदुपरान्त काम की उत्कटता से [यत् किञ्चित् क्रियते] जो कुछ (अनंगरमणादि) अनंगक्रीड़ा की जाती है [तत्रापि रागाद्युत्पत्तितन्त्रत्वात्] उसमें भी रागादि की उत्पत्ति के कारण [हिंसा भवति] हिंसा होती है ।
Meaning : Again, whatever indulgence of the sex-passion is had in unnatural ways on account of lust, it always brings about Himsa because it has had its rise in desire etc.

  टोडरमल