+ कुशील के त्याग का क्रम -
ये निजकलत्रमात्रं परिहर्तुं शक्नुवन्ति न हि मोहात् ।
नि:शेषशेषयोषिन्निषेवणं तैरपि न कार्यम् ॥110॥
जो मोहवश स्व स्त्री के, त्याग में असमर्थ हैं ।
वे शेष सब स्त्रिओं का, सेवन सदा ही त्याग दें ॥११०॥
अन्वयार्थ : [ये मोहात्] जो मोह-वश [निजकलत्रमात्रं परिहर्तुं] अपनी विवाहिता स्त्री को ही छोड़ने में [हि न शक्नुवन्ति] निश्चय से समर्थ नहीं है [तै: नि:शेषशेषयोषिन्निवेषणं अपि] उन्हें बाकी की समस्त स्त्रियों का सेवन तो कदापि [न कार्यम्] नहीं करना चाहिए ।
Meaning : Those, who, because of attachment, cannot renounce their own wives, they also should totally abstain from enjoying other females.

  टोडरमल