+ शंका-समाधान -
यद्येयं भवति तदा परिग्रहो न खलु कोऽपि बहिरंग: ।
भवति नितरां यतोऽसौ धत्ते मूर्च्छानिमित्तत्त्वम् ॥113॥
यदि मूर्छा ही परिग्रह तो, बाह्य परिग्रह कुछ नहीं ।
पर नहीं ऐसा क्योंकि वह, नित मूर्छा हेतु सभी ॥११३॥
अन्वयार्थ : [यदि एवं तदा परिग्रह:] यदि ऐसा है (मूर्च्छा ही परिग्रह होवे) तो परिग्रह [न खलु क: अपि बहिरंग] वास्तव में कोई भी नहीं बाहर में [यत: असौ] क्योंकि उसके (बाह्य परिग्रह के) [मूर्च्छानिमित्तत्त्वम्] मूर्च्छा के निमित्तपने का [नितरां धत्ते] अतिशयरूप से धारण है ।
Meaning : If this be so, then there can be no external Parigraha at all. It certainly is the cause of attachment.

  टोडरमल