+ अतिव्याप्ति-दोष परिहार -
एवमतिव्याप्ति: स्यात्परिग्रहस्येति चेद्भवेन्नैवम् ।
यस्मादकषायाणां कर्मग्रहणे न मूर्च्छास्ति ॥114॥
यदि बाह्य परिग्रह अतिव्याप्ति, कहो तो ऐसा नहीं ।
है क्योंकि कर्मादि ग्रहण, अकषायी के मूर्छा नहीं ॥११४॥
अन्वयार्थ : [एवं परिग्रहस्य] और बाह्य परिग्रह से [इति चेत्] इस प्रकार अगर [अतिव्याप्ति: स्यात्] अतिव्याप्ति सम्भव है [एवं न भवेत्] ऐसा नहीं होता [यस्मात् अकषायाणां] क्योंकि कषाय-रहित (वीतरागी) को [कर्मग्रहणे] कार्मणवर्गणा के ग्रहण में [मूर्च्छा नास्ति] मूर्च्छा नहीं है ।
Meaning : This is over-lapping and will include the drawing in of Karmic molecules by passionless saints as Parigraha, This is not so, because there is no attachment.

  टोडरमल