+ परिग्रह के भेद -
अतिसंक्षेपाद् द्विविध: स भवेदाभ्यन्तरश्च बाह्यश्च ।
प्रथमश्चतुर्दशविधो भवति द्विविधो द्वितीयस्तु ॥115॥
वह परिग्रह संक्षेप में, अंतरंग बहिरंग है द्विविध ।
है प्रथम चौदह भेदयुत, बहिरंग होता है द्विविध ॥११५॥
अन्वयार्थ : [स अतिसंक्षेपात्] वह (परिग्रह) अत्यन्त संक्षेप से [आभ्यन्तर: च बाह्य:] अन्तरंग और बहिरंग [द्विविध: भवेत्] दो प्रकार का है [च प्रथम: चतुर्दशविध:] और पहला (अन्तरंग परिग्रह) चौदह प्रकार का [तु द्वितीय:] तथा दूसरा (बहिरंग परिग्रह) [द्विविध: भवति] दो प्रकार का है ।
Meaning : Very briefly speaking, Parigraha is of two kinds, internal and external. The first is of 14 kinds, and the second is of two kinds.

  टोडरमल