
मिथ्यात्ववेदरागास्तथैव हास्यादयश्च षड् दोषा: ।
चत्वारश्च कषायाश्चतुर्दशाभ्यन्तरा ग्रन्था: ॥116॥
मिथ्यात्व चारों कषायें, त्रय वेदराग रति अरति ।
भय शोक हास्य रु जुगुप्सा, छह दोष चौदह प्रथम ही ॥११६॥
अन्वयार्थ : [मिथ्यात्ववेदरागा:] मिथ्यात्व, वेद का राग [तथैव च] इसी तरह [हास्यादय:] हास्यादि अर्थात् हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, यह [षड् दोषा: च] छह दोष और [चत्वार:] चार अर्थात् क्रोध, मान, माया, लोभ [कषाया:] कषायभाव - ये [आभ्यन्तरा: ग्रन्था:] अन्तरंग परिग्रह हैं ।
Meaning : The fourteen internal possessions, attachments, are wrong belief, sexual inclinations, the six defects, laughter etc., and the four passions.
टोडरमल