+ बाह्य परिग्रह के दोनों भेद हिंसामय -
अथ निश्चित्तसचित्तौ बाह्यस्य परिग्रहस्य भेदौ द्वौ ।
नैष: कदापि संग: सर्वोऽप्यतिवर्तते हिंसाम् ॥117॥
नित बाह्य परिग्रह द्विविध, चेतन अचेतन के भेद से ।
हैं सभी परिग्रह सर्वदा, सर्वत्र हिंसामय रहें ॥११७॥
अन्वयार्थ : [अथ बाह्यस्य परिग्रहस्य] इसके बाद बहिरंग परिग्रह के [निश्चित्तसचित्तौ द्वौ भेदो] अचित्त और सचित्त यह दो भेद हैं [एष: सर्व: अपि संग] यह समस्त परिग्रह [कदापि हिंसाम्] किसी भी समय हिंसा का [न अतिवर्तते] उल्लंघन नहीं करते (हिंसा रहित नहीं है)
Meaning : External Parigraha is of two kinds with reference to living and non-living objects. All this Parigraha never excludes Himsa.

  टोडरमल