+ हिंसा-अहिंसा का लक्षण -
उभयपरिग्रहवर्जनमाचार्या: सूचयन्त्यहिंसेति ।
द्विविधपरिग्रहवहनं हिंसेति जिनप्रवचनज्ञा: ॥118॥
दोनों परिग्रह रहित ही, है अहिंसा सूचित करें ।
दोनों परिग्रह युक्त हिंसा, सूत्र ज्ञाता ऋषि कहें ॥११८॥
अन्वयार्थ : [जिनप्रवचनज्ञा: आचार्या:] जैन सिद्धान्त के ज्ञाता आचार्य [उभय-परिग्रहवर्जनं] दोनों प्रकार के परिग्रह के त्याग को [अहिंसा इति] अहिंसा ऐसा और [द्विविध परिग्रहवहन] दोनों प्रकार के परिग्रह धारण करने को हिंसा ऐसा [सूचयन्ति] सूचित करते (कहते) हैं ।
Meaning : The Acharyas (preceptor saints), who are well versed in Jaina Philosophy, call the renunciation of Parigraha of both sorts as Ahimsa, and the appropriation of Parigraha of two sorts as Himsa,

  टोडरमल