
प्रविहाय च द्वितीयान् देशचरित्रस्य सन्मुखायात: ।
नियतं ते हि कषाया: देशचरित्रं निरुन्धन्ति ॥125॥
ये और अप्रत्याख्यानावरण तज अणुव्रति हुआ ।
है क्योंकि यह कषाय, रोके देशचारित्र जिन कहा ॥१२५॥
अन्वयार्थ : [च द्वितीयान्] और दूसरी कषाय [अप्रत्याख्यानावरणी क्रोध-मान-माया-लोभ] को [प्रविहाय देशचरित्रस्य] छोड़कर देशचारित्र के [सन्मुखायात: हि] सन्मुख आता है कारण कि [ते कषाया: नियतं] वे कषाय निश्चितरूप से [देशचरित्रं निरुन्धन्ति] एकदेशचारित्र को रोकतीं हैं ।
Meaning : Again having suppressed the passions of second which certainly obstruct partial conduct, laymen approach partialvows.
टोडरमल