
बहिरङ्गादपि सङ्गात् यस्मात्प्रभवत्यसंयमोऽनुचित: ।
परिवर्जयेदशेषं तमचित्तं वा सचित्तं वा ॥127॥
हो बाह्य परिग्रह से सदा, अनुचित असंयम व्यक्त ही ।
अतएव छोड़ो नित उसे, चेतन अचेतन सभी ही ॥१२७॥
अन्वयार्थ : [वा] तथा [तम्] उस बाह्य परिग्रह को [अचित्तं] भले ही वह अचेतन हो [वा] या [सचित्तं] सचेतन हो [अशेषं] सम्पूर्णरूप से [परिवर्जयेत्] छोड़ देना चाहिए [यस्मात्] कारण कि [बहिरङ्गात्] बहिरङ्ग [सङ्गात्] परिग्रह से [अपि] भी [अनुचित:] अयोग्य अथवा निन्द्य [असंयम:] असंयम [प्रभवति] होता है ।
Meaning : All external attachments, whether living or nonliving should be avoided; because improper non-control is brought about by external possession even,
टोडरमल