+ सर्वदेश त्याग में अशक्य एकदेश त्याग करें -
योऽपि न शक्यस्त्युक्तं धनधान्यमनुष्यवास्तुवित्तादि ।
सोऽपि तनूकरणीयो निवृत्तिरूपं यतस्तत्त्वं ॥128॥
धन धान्य नर घर वैभवादि, छोड़ने का बल नहीं ।
तो करो कम नित ही उन्हें, है तत्त्व निवृत्तिरूप ही ॥१२८॥
अन्वयार्थ : [अपि] और [य:] जो [धनधान्यमनुष्यवास्तुवित्तादि:] धन, धान्य, मनुष्य, गृह, सम्पदा इत्यादि परिग्रह [त्यक्तुम्] सर्वथा छोड़ना [न शक्य:] शक्य न हो, [स:] तो उसे [अपि] भी [तनू] न्यून [करणीय:] कर देना चाहिए [यत:] कारण कि [निवृत्तिरूपं] त्यागरूप ही [तत्त्वम्] वस्तु का स्वरूप है ।
Meaning : And if one is unable to wholly renounce cattle, corn, servants, buildings, wealth etc, he also, should at least limit them; because renunciation is the Right principle.

  टोडरमल