इत्यत्र त्रितयात्मनि मार्गे मोक्षस्य ये स्वहितकामा: ।
अनुपरतं प्रयतन्ते प्रयान्ति ते मुक्तिमचिरेण ॥135॥
यों निज हितैषी मोक्ष के, रत्नत्रयात्मक मार्ग में ।
अनवरत करते यत्न, पाते मोक्ष सुख अति शीघ्र वे ॥१३५॥
अन्वयार्थ : [इति] इस प्रकार [अत्र] इस लोक में [ये] जो [स्वहितकामा:] अपने हित के इच्छुक [मोक्षस्य] मोक्ष के [त्रितयात्मनि] रत्नत्रयात्मक [मार्गे] मार्ग में [अनुपरतं] सर्वदा बिना अटके हुए [प्रयतन्ते] प्रयत्न करते हैं [ते] वे पुरुष [मुक्तिम्] मोक्ष में [अचिरेण] शीघ्र ही [प्रयान्ति] गमन करते हैं ।
Meaning : Thus, those who desire self-advancement make constant exertions, here, in the there-fold path of liberation, and attain salvation without delay.

  टोडरमल