+ दिग्व्रत -
प्रविधाय सुप्रसिद्धैर्मर्यादां सर्वतोप्यभिज्ञानै: ।
प्राच्यादिभ्यो दिग्भ्य: कर्त्तव्या विरतिरविचलिता ॥137॥
नित सुप्रसिद्ध सुज्ञात से, सर्वत्र मर्यादा बना ।
उससे बहि: पूर्वादि दिश में, नहीं जाना सर्वथा ॥१३७॥
अन्वयार्थ : [सुप्रसिद्धै:] भले प्रकार प्रसिद्ध [अभिज्ञानै:] ग्राम, नदी, पर्वतादि भिन्न-भिन्न लक्षणों से [सर्वत:] सभी दिशाओं में [मर्यादां] मर्यादा [प्रविधाय] करके [प्राच्यादिभ्य:] पूर्वादि [दिग्भ्य:] दिशाओं में [अविचलिता विरति:] गमन न करने की प्रतिज्ञा [कर्त्तव्या] करना चाहिए ।
Meaning : Having fixed the limits from well-known objects, in all directions, east etc., one should steadily practise Dig Vrata.

  टोडरमल