+ दिग्व्रत पालन करने का फल -
इति नियमितदिग्भागे प्रवर्तते यस्ततो बहिस्तस्य ।
सकलासंयमविरहाद्भवत्यहिंसाव्रतं पूर्णम् ॥138॥
दिग्व्रत प्रवृत्ति सुनिश्चित, दिग्भाग में उससे बहि: ।
है सर्व अविरति त्याग, अहिंसा पूर्ण ही सीमा बहि: ॥१३८॥
अन्वयार्थ : [य:] जो [इति] इस प्रकार [नियमितदिग्भागे] मर्यादा की हुई दिशाओं के अन्दर [प्रवर्तते] रहता है [तस्य] उस पुरुष को [तत:] उस क्षेत्र के [बहि:] बाहर के [सकलासंयमविरहात्] समस्त असंयम के त्याग के कारण [पूर्णं] परिपूर्ण [अहिंसाव्रतं] अहिंसाव्रत [भवति] होता है ।
Meaning : He who thus confines his activities within the limited directions, follows complete vow of Ahimsa as regards what is beyond those limits, because of total absence of nonrestraint there.

  टोडरमल