
विद्यावाणिज्यमषीकृषिसेवाशिल्पजीविनां पुंसाम् ।
पापोपदेशदानं कदाचिदपि नैव वक्तव्यम् ॥142॥
विद्या वणिज लेखन कृषि, सेवक सुशिल्पी नरों को ।
पापोपदेश कभी नहीं, देना निरन्तर पाप हो ॥१४२॥
अन्वयार्थ : [विद्या-वाणिज्य-मषी-कृषि-सेवा-शिल्पजीविनां] विद्या, व्यापार, लेखन-कला, खेती, नौकरी और कारीगरी से निर्वाह चलानेवाले [पुंसाम] पुरुषों को [पापोपदेशदानं] पाप का उपदेश मिले ऐसा [वचनं] वचन [कदाचित् अपि] किसी भी समय [नैव] नहीं [वक्तव्यम्] बोलना चाहिए ।
Meaning : Sinful advice should never be given to persons living upon art, trade, writing, agriculture, arts and crafts, service, and industry.
टोडरमल