+ सामायिक कब और किस प्रकार -
रजनीदिनयोरन्ते तदवश्यं भावनीयमविचलितम् ।
इतरत्र पुन: समये न कृतं दोषाय तद्गुणाय कृतम् ॥149॥
वह रात दिन के अन्त में, एकाग्र हो निश्चित करो ।
यदि अन्य में भी करो तो, नहिं दोष अति गुण नित्य हों ॥१४९॥
अन्वयार्थ : [तत्] वह सामायिक [रजनीदिनयो:] रात्रि और दिन के [अन्ते] अन्त में [अविचलितम्] एकाग्रतापूर्वक [अवश्यं] अवश्य [भावनीयम्] करना चाहिये [पुन:] और यदि [इतरत्रसमये] अन्य समय में भी [कृतं] करने में आवे तो [तत्कृतं] वह सामायिक कार्य [दोषाय] दोष के लिये [न] नहीं है, अपितु [गुणाय] गुण के लिये ही होती है ।
Meaning : This Samayik must be regularly practised at the end of each night and day. If it is performed at other times. it is not improper, but is beneficial.

  टोडरमल