+ उपवास के दिन का कर्त्तव्य -
श्रित्वा विविक्तवसतिं समस्तसावद्ययोगमपनीय ।
सर्वेन्द्रियार्थविरत: कायमनोवचनगुप्तिभिस्तिष्ठेत् ॥153॥
फिर पूत निर्जन वसतिका जा, सभी सावद्य योग तज ।
सब इन्द्रियार्थों से विरत, हो मन वचन तन गुप्ति युत ॥१५३॥
अन्वयार्थ : फिर [विविक्तवसतिं श्रित्वा] निर्जन वसतिका (निवासस्थान) में जाकर [समस्तसावद्ययोगं अपनीय] सम्पूर्ण सावद्ययोग का त्याग करके [सर्वेन्द्रियार्थविरत:] सर्व इन्द्रियों से विरक्त होकर [कायमनोवचनगुप्तिभि: तिष्ठेत्] मनगुप्ति, वचनगुप्ति, और कायगुप्ति सहित स्थिर होवे ।
Meaning : One should then retire to a secluded spot, renounce all sinful activities, abstain from indulgence in all objects of the senses, and observe due restraint of body, speech and mind.

  टोडरमल