
धर्मध्यानासक्त को वासरमतिवाह्य विहितसान्ध्यविधिम् ।
शुचिसंस्तरे त्रियामां गमयेत्स्वाध्यायजितनिद्र: ॥154॥
हो धर्म ध्यानासक्त दिन, सामायिकादि में बिता ।
स्वाध्याय से निद्रा विजय, शुचि संस्तर पर हो निशा ॥१५४॥
अन्वयार्थ : [विहितसान्ध्यविधिम्] प्रात:काल तथा सन्ध्याकाल की सामायिकादि क्रिया करके [वासरम् धर्मध्यानासक्त:] दिवस धर्म-ध्यान में लीन होकर [अतिवाह्य] व्यतीत करे और [स्वाध्यायजितनिद्र:] पठन-पाठन से निद्रा को जीतकर [शुचिसंस्तरे] पवित्र बिस्तर पर [त्रियामां गमयेत्] रात पूर्ण करे ।
Meaning : He should pass the day, wrapped in spiritual contemplation; perform Samayika at sunset, vanquish sleep by self-study, and thus pass the night on a pure mat.
टोडरमल