+ उपवास में विशेषत: अहिंसा -
भोगोपभोगहेतो: स्थावरहिंसा भवेत् किलामीषाम् ।
भोगोपभोग विरहाद् भवति न लेशोऽपि हिंसाया: ॥158॥
इस व्रती के भोगोपभोगादि जनित एकेन्द्रियों ।
की कही हिंसा विरत, भोगोपभोग से नहिं घात हो ॥१५८॥
अन्वयार्थ : [किल] निश्चय से [अमीषाम्] इस देशव्रती श्रावक को [भोगोपभोगहेतो:] भोग-उपभोग के हेतु से [स्थावरहिंसा भवेत्] स्थावर अर्थात् एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है परन्तु [भोगोपभोगविरहात्] भोग-उपभोग के त्याग से [हिंसाया] हिंसा [लेश: अपि न भवति] लेशमात्र भी नहीं होती ।
Meaning : On account of Bhoga and Upabhoga, Himsa of immobile beings only is caused. By renunciation of Bhoga and Upabhoga, not the slightest Himsa is occasioned.

  टोडरमल