
इत्थमशेषितहिंसा: प्रयाति स महाव्रतित्वमुपचारात् ।
उदयति चरित्रमोहे लभते तु न संयमस्थानम् ॥160॥
यों सभी हिंसादि रहित, उपचार से महाव्रतिपना ।
उसके परन्तु चरित्र मोह में, प्रगट संयम दशा ना ॥१६०॥
अन्वयार्थ : [इत्थम् अशेषितहिंसा] इस प्रकार सम्पूर्ण हिंसाओं के रहित [स:] वह [उपचारात्] उपचार से [महाव्रतित्वं प्रयाति] महाव्रतपना पाता है, [तु] परन्तु [चरित्रमोहे उदयति] चारित्रमोह के उदयरूप होने के कारण [संयमस्थानम्] संयमस्थान [न लभते] नहीं प्राप्त करता ।
Meaning : Having thus got rid of all Himsa, he practically reaches the stage of a Mahavrati ; but he cannot attain the spiritual stage of a Saint, because of the operation of Right-Conduct-deluding Karma.
टोडरमल