+ एकत्व्वानुप्रेक्षा -
एक्‍को करेदि कम्‍मं, एक्‍को हिंडदि य दीहसंसारे ।
एक्‍को जायदि मरदि य, तस्‍स फलं भुंजदे एक्‍को ॥14॥
अन्वयार्थ : जीव अकेला ही कर्म करता है, अकेला ही दीर्घ संसार में भ्रमण करता है, अकेला ही जन्‍म लेता है, अकेला ही मरता है और अकेला ही कर्म का फल भोगता है ॥१४॥