एक्को करेदि पावं, विसयणिमित्तेण तिव्वलोहेण ।
णिरयतिरिएसु जीवो, तस्स फलं भुंजदे एक्को ॥15॥
अन्वयार्थ :
विषयों के निमित्त तीव्र लोभ से जीव अकेला ही पाप करता है और नरक तथा तिर्यंच गति में अकेला ही उसका फल भोगता है ॥१५॥