एक्को करेदि पुण्णं, धम्मणिमित्तेण पत्तदाणेण ।
मणुवदेवेसु जीवो, तस्स फलं भुंजदे एक्को ॥16॥
अन्वयार्थ :
धर्म के निमित्त पात्रदान के द्वारा जीव अकेला ही पुण्य करता है और मनुष्य तथा देवों में अकेला ही उसका फल भोगता है ॥१६॥