+ क्षेत्रपरिवर्तन का स्‍वरूप -
सव्‍वम्हि लोयखेत्‍ते, कमसो तं णत्थि जं ण उप्‍पण्‍णं ।
उग्‍गाहणेण बहुसो, परिभमिदो खेत्‍तसंसारे ॥26॥
अन्वयार्थ : समस्‍त लोकरूपी क्षेत्र में ऐसा कोई स्‍थान नहीं है जहाँ यह क्रम से उत्‍पन्‍न न हुआ हो। समस्‍त अवगाहनाओं के द्वारा इस जीवने क्षेत्र संसार में अनेक बार भ्रमण किया है ॥२६॥