+ भवपरिवर्तन का स्‍वरूप -
णिरयाउजहण्‍णादिसु, जाव दु उवरिल्‍लया दु गेवेज्‍जा ।
मिच्‍छत्‍तसंसिदेण दु, बहुसो वि भवट्ठिदी भमिदो ॥28॥
अन्वयार्थ : मिथ्‍यात्‍व के आश्रम से इस जीव ने नरक की जघन्‍य आयु से लेकर उपरिम ग्रैवेयक तक की भवस्थिति को धारण कर अनेक बार भ्रमण किया है ॥२८॥