सव्वे पयडिट्ठिदिओ, अणुभागपदेसबंधठाणाणि ।
जीवो मिच्छत्तवसा, भमिदो पुण भावसंसारे ॥29॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व के वशीभूत होकर इस जीव ने सम्पूर्ण कर्मों की प्रकृति,स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंध के स्थानों को अनेक बार प्राप्त कर भाव संसार में भ्रमण किया ॥29॥