मम पुत्तं मम भज्जा, मम धणधण्णो त्ति तित्वकंखाए ।
चइऊण धम्मबुद्धिं, पच्छा परिपडदि दीहसंसारे ॥31॥
अन्वयार्थ : जो जीव, यह मेरा पुत्र है, यह मेरी स्त्री है, यह मेरा धनधान्य है इस प्रकार की तीव्र आकांक्षा से धर्मबुद्धि छोड़ता है वह पीछे दीर्घ संसार में पड़ता है ॥३१॥