हंतूण जीवरासिं, महुमंसं सेविऊण सुरयाणं ।
परदव्वपरकलत्तं, गहिऊण य भमदि संसारे ॥33॥
अन्वयार्थ :
जीवराशि का घात कर, मधु मांस और मदिरा का सेवन कर तथा परद्रव्य और परस्त्री को ग्रहण कर यह जीव संसार में भ्रमण करता है ॥३३॥