दुग्‍गंध बीभच्‍छं, कलिमलभरिंद अचेयणं मुत्‍तं ।
सडणप्‍पडणसहावं, देहं इदि चिंतए णिच्‍चं ॥44॥
अन्वयार्थ : यह शरीर दुर्गंध से युक्‍त‍ है, घृणित है, गंदे मल से भरा हुआ है, अचेतन है, मूर्तिक है तथा सड़ना और गलना स्‍वभाव से सहित है ऐसा सदा चिंतन करना चाहिए ॥४४॥