देहादो वदिरित्‍तो, कम्‍मविरहिओ अणंतसुहणिलयो ।
चोक्‍खो हवेइ अप्‍पा, इदि णिच्‍चं भावणं कुज्‍जा ॥46॥
अन्वयार्थ : आत्‍मा इस शरीर से भिन्‍न है, कर्मरहित है, अनंत सुखों का भंडार है तथा श्रेष्‍ठ है इस प्रकार निरंतर भावना करनी चाहिए ॥४६॥