जम्‍मसमुद्दे बहुदोसवीचिए दु:खजलचराकिण्‍णे ।
जीवस्‍स परिब्‍भमणं, कम्‍मासवकारणं होदि ॥56॥
अन्वयार्थ : अनेक दोषरूपी तरंगों से युक्‍त तथा दु:खरूपी जलचर जीवों से व्‍याप्‍त संसाररूपी समुद्र में जीवका जो परिभ्रमण होता है वह कर्मास्रव के कारण होता है। अर्थात् कर्मास्रव के कारण ही जीव संसारसमुद्र में परिभ्रमण करता है ॥५६॥