कम्मासवेण जीवो, बूडदि संसारसागरे घोरे ।
जं णाणवसं किरिया, मोक्खणिमित्तं परंपरया ॥57॥
अन्वयार्थ :
कर्मास्रव के कारण जीव संसाररूपी भयंकर समुद्रमें डूब रहा है। जो क्रिया ज्ञानवश होती है वह परंपरा से मोक्षका कारण होती है ॥५७॥