पारंपज्‍जाएण दु, आसवकिरियाए णत्‍थि णिव्‍वाणं ।
संसारगमणकारणमिदि णिंदं आसवो जाण ॥59॥
अन्वयार्थ : परंपरा से भी आस्रवरूप क्रिया के द्वारा निर्वाण नहीं होता। आस्रव संसारगमन का ही कारण है। इसलिए निंदनीय है ऐसा जानो ॥५९॥