पुव्‍वुत्‍तासवभेदा, णिच्‍छयणयएण णत्‍थि जीवस्‍स ।
उहयासवणिम्‍मुक्‍कं, अप्‍पाणं चिंतए णिच्‍चं ॥60॥
अन्वयार्थ : पहले जो आस्रव के भेद कहे गये हैं वे निश्‍चयनय से जीव के नहीं हैं, इसलिए आत्‍मा को दोनों प्रकार के आस्रवों से रहित ही निरंतर विचारना चाहिए ॥६०॥