पंचमहव्‍वयमणसा, अविरमणणिरोहणं हवे णियमा ।
कोहादि आसवाणं, दाराणि कसायरहियपल्‍लगेहि ॥62॥
अन्वयार्थ : पंचमहाव्रतों से युक्‍त मनसे अविरतिरूप आस्रवका निरोध नियम से हो जाता है और क्रोधादि कषायरूप आस्रवों के द्वार कषायके अभावरूप फाटकों से रूक जाते हैं ॥६२॥