सुहजोगस्‍स पवित्‍ती, संवरणं कुणदि असुहजोगस्‍स ।
सुहजोगस्‍स णिरोहो, सद्धुवजोगेण संभवदि ॥63॥
अन्वयार्थ : शुभपयोग की प्रवृत्ति अशुभ योग का संवर करती है और शुद्धोपयोग के द्वारा शुभयोग का निरोध हो जाता है ॥६३॥