सुद्धुवजोगेण पुणो, धम्मं सुक्कं च होदि जीवस्स ।
तम्हा संवरहेदू, झाणो त्ति विचिंतए णिच्चं ॥64॥
अन्वयार्थ :
शुद्धोपयोग से जीव के धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान होते हैं, इसलिए ध्यान संवरका कारण है ऐसा निरंतर विचार करना चाहिए ॥६४॥