बंधपदेसग्‍गलणं, णिज्‍जरणं इदि जिणेहि पण्‍णत्‍तं ।
जेण हवे संवरणं, तेण दु णिज्‍जरण‍मिति जाण ॥66॥
अन्वयार्थ : बँधे हुए कर्मों का गलना निर्जरा है ऐसा जिनेंद्र भगवान् ने कहा है। जिस कारण से संवर होता है उसी कारण से निर्जरा होती है ॥६६॥