+ आर्जव धर्म का लक्षण -
मोत्‍तूण कुडिलभावं, णिम्‍मलहिदएण चरदि जो समणो ।
अज्‍जवधम्‍मं तइओ, तस्‍स दु संभवदि णियमेण ॥73॥
अन्वयार्थ : जो मुनि कुटिलभाव को छोड़कर निर्मल हृदय से आचरण करता है उसके नियम से तीसरा आर्जव धर्म होता है ॥७३॥