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शौच धर्म का लक्षण
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कंखाभावणिवित्तिं, किच्चा वेरग्गभावणाजुत्तो ।
जो वड्ढदि परममुणी, तस्स दु धम्मो हवे सोच्चं ॥75॥
अन्वयार्थ :
जो उत्कृष्ट मुनि कांक्षा भाव से निवृत्ति कर वैराग्यभाव से रहता है उससे शौचधर्म होता है ॥७५॥