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संयमधर्म का लक्षण
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वदसमिदिपालणाए, दंडच्चाएण इंदियजएण ।
परिणममाणस्स पुणो, संजमधम्मो हवे णियमा ॥76॥
अन्वयार्थ :
मन वचन काय की प्रवृत्तिरूप दंड को त्यागकर तथा इंद्रियों को जीतकर जो व्रत और समितियों से पालनरूप प्रवृत्ति करता है उसके नियम से संयमधर्म होता है ॥७६॥