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उत्तम तप का लक्षण
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विसयकसायविणिग्गहभावं काऊण झाणसज्झाए ।
जो भावइ अप्पाणं, तस्स तवं होदि णियमेण ॥77॥
अन्वयार्थ :
विषय और कषाय के विनिग्रहरूप भाव को करके जो ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा आत्मा की भावना करता है उसके नियम से तप होता है ॥७७॥