णिव्वेगतियं भावइ, मोहं चइऊण सव्वदव्वेसु ।
जो तस्स हवे चागो, इदि भणिदं जिणवरिंदेहिं ॥78॥
अन्वयार्थ :
जो समस्त द्रव्यों के विषय में मोह का त्याग कर तीन प्रकार के निर्वेद की भावना करता है उसके त्याग धर्म होता है, ऐसा जिनेंद्रदेव ने कहा है ॥७८॥