+ बोधिदुर्लभ भावना का स्वरूप -
उप्‍पज्‍जदि सण्‍णाणं, जेण उवाएण तस्‍सुवायस्‍स ।
चिंता हवेइ बोहो, अच्‍चंतं दुल्‍लहं होदि ॥83॥
अन्वयार्थ : जिस उपाय से सम्‍यग्‍ज्ञान उत्‍पन्‍न होता है उस उपाय की चिंता बोधि है, यह बोधि अत्‍यंत दुर्लभ है ॥८३॥