
मूलुत्तरपयदीओ, मिच्छत्तादी असंखलोगपरिमाणा ।
परदव्वं सगदव्वं, अप्पा इदि णिच्छयणएण ॥85॥
अन्वयार्थ : मिथ्यात्व को आदि लेकर असंख्यात लोकप्रमाण जो कर्मों की मूल तथा उत्तर प्रकृतियाँ हैं वे परद्रव्य हैं और आत्मा स्वद्रव्य है ऐसा निश्चयनयसे कहा जाता है ॥८५॥