
एवं जायदि णाणं, हेयमुवादेय णिच्चये णत्थि ।
चिंतिज्जइ मुणि बोहिं, संसारविरमणट्ठे य ॥86॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार स्वद्रव्य और परद्रव्य का चिंतन करने से हेय और उपादेय का ज्ञान हो जाता है अर्थात् परद्रव्य हेय है और स्वद्रव्य उपादेय है। निश्चयनयमें हेय और उपादेय का विकल्प नहीं है। मुनि को संसार का विराम करने के लिए बोधि का विचार करना चाहिए ॥८६॥