रत्तिदिवं पडिकमणं, पच्‍चक्‍खाणं समाहि सामइयं ।
आलोयणं पकुव्‍वदि, जदि विज्‍जदि अप्‍पणो सत्तिं ॥88॥
अन्वयार्थ : यदि अपनी शक्ति है तो रातदिन प्रतिक्रमण, प्रत्‍याख्‍यान, समाधि और आलोचना करनी चाहिए ॥८८॥

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