+ अहिंसा अणुव्रत के अतिचार -
छेदनबन्धनपीडनमतिभारारोपणं व्यतीचाराः
आहारवारणापि च स्थूलवधाद् व्युपरतेः पञ्च ॥54॥
अन्वयार्थ : [स्थूलवधाद् व्युपरतेः] स्थूल-वध से विरत (अहिंसाणुव्रत) के, [छेदनबन्धनपीडनम्] छेदना, बांधना, पीड़ा देना, [अतिभारारोपणम्] अधिक भार लादना [अपि] और [आहारवारणा] आहर का रोकना [एते] ये पाँच [व्यतीचाराः] अतिचार हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

[[व्यतीचारा]] विविधा विरूपका वा अतीचारा दोषा: । कति ? [[पञ्च]] । कस्य ? [[स्थूलवधाद् व्युपरते:]] । कथमित्याह [[छेदनेत्यादि]] कर्णनासिकादीनामवयवानामपनयनं छेदनं, अभिमतदेशे गतिनिरोधहेतुर्बन्धनं, पीडादण्डकशाद्यभिघात:, अतिभारारोपणं न्याय्यभारादधिकभारारोपणम् । न केवलमेतच्चतुष्टयमेव किन्तु [[आहारवारणापि च]] आहारस्य अन्नपानलक्षणस्य वारणा निषेधो धारणा वा निरोध: ॥
आदिमति :

'विविधा विरूपका वा अतिचारा दोषा: व्यतिचारा:' इस समास के अनुसार व्यतीचार का अर्थ है- नाना प्रकार के अथवा व्रत को विकृत करने वाले दोष । ये अतिचार-दोष पाँच हैं । दुर्भावना से नाक, कानादि अवयवों को छेदना, इच्छित स्थान पर जाने से रोकने के लिए रस्सी आदि से बाँध देना, डण्डे कोड़े आदि से पीटना, उचित भार से अधिक भार लादना तथा अन्न पानादिरूप आहार का निषेध करना अथवा थोड़ा देना -- अहिंसाणुव्रत के ये पाँच अतिचार हैं ॥५४॥