+ श्रावक के आठ मूलगुण -
मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतपञ्चकम्
अष्टौ मूलगुणानाहुर्गृहिणां श्रमणोत्तमाः ॥66॥
अन्वयार्थ : [श्रमणोत्तमाः] मुनियों में उत्तम गणधरादिक देव [मद्यमांसमधुत्यागैः] मद्यत्याग, मांसत्याग और मधुत्याग [सह] के साथ [अणुव्रतपञ्चकम्] पाँच अणुव्रतों को [गृहिणां] गृहस्थों के [अष्टौ] आठ [मूलगुणान्] मूलगुण [आहू:] कहते हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

[[गृहिणामष्टौ मूलगुणानाहु:]] । के ते ? श्रमणोत्तमा जिना: । किं तत् ? [[अणुव्रतपञ्चकम्]] । कै: सह ? [[मद्यमांसमधुत्यागै:]] मद्यं च मांसं च मधु च तेषां त्यागास्तै: ॥
आदिमति :

श्रमण मुनियों को कहते हैं । इनमें जो उत्तम श्रेष्ठ गणधरादिक देव हैं, वे श्रमणोत्तम कहलाते हैं । उन्होंने गृहस्थों के आठ मूलगुण इस तरह कहे हैं- १. मद्यत्याग, २. मांसत्याग, ३. मधुत्याग, ४. अहिंसाणुव्रत, ५. सत्याणुव्रत, ६. अचौर्याणुव्रत, ७. ब्रह्मचर्याणुव्रत, ८. परिग्रहपरिमाणाणुव्रत ।